Darood e Mahi in Hindi – दुरूदे माही और दुरूदे माहि की फ़ज़ीलत –
एक दिन नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीना मुनव्वरा की मस्जिद में बेठे हुए थे ! कि एक देहाती आया और एक तबाक (बर्तन) जो कि बन्द था ! आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने लाकर रख दिया !
हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा कि इसमे क्या है ? उसने जबाब दिया : ऐ अल्लाह के रसूल ! तीन दिन बीत गये मुझें इस मछली को पकाते हुये ! लेकिन यह पकती ही नहीं ! इसको आग का असर (प्रभाव) ही नहीं होता, इसलिये मैँ इसको आप की सेवा में लाया हूँ ! आप ही इसके बारे में भली भाँति जान सकते हैं !
आप ने उस मछली से पूछा तो वह अल्लाह के हुक्म से बोलने लगी और कहा : ऐ अल्लाह के रसूल एक दिन मै पानी में खड़ी थी कि एक आदमी इस दुरूद शरीफ़ को पढ़ रहा था ! और उसकी आवाज़ मेरे कानों में पहुँच गयी ! इसके अलावा मैंने ओर कुछ नहीं किया !
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे हुक्म दिया कि दुरूद सुना, तो उसने सुना दिया ! आप ने फ़रमाया : ऐ अली ! इस दुरूद शरीफ (Darood-e-Mahi) को लिख लो ओर लोगों को सिखा दो ! जो इस दुरूद को पढेगा ! उस पर अल्लाह ने चाहा तो आग हराम हो जायेगी ! दुरूद शरीफ (Darood-e-Mahi) यह है।
दुरूदे माही – Darood-e-Mahi Hindi Mein
दुरूदे माही |
बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम् |
अल्लाहुम्म सल्लि अला मुहम्मदिव्वं अला आलि मुहम्मिदन् खैरल ख़लाइकि वअफजलिल बशरि वशफीअिल उममि यो मल हशरि वन्नशरि +व सल्लि अला सय्यिदिना मुहम्मदिव्वं अला आलि सय्यिदिना मुहम्मदिन् बिअ ददि कुंल्लि मालूमिल्ल-क सल्लि अला मुहम्मदिव्वं अला आलि मुहम्मिदव्वं बारिक व सल्लि |
अला जमीअिल अम्बियाइ वल मुर-सली-न + व सल्लि अला कुल्लिल मलाइकतिल मुक़र्रबी-न व अला अिबादिल्लाहिस्सालिही-न व-सल्लिम् तसली-म न् कसी-रन् कसीरा+बि-रह-मति-क वबि-फज़लि-क वबि-कऱमि-क या अक-र-मल-अक-रमी-न बि रहमतिक या अऱहमर्राहिमीन+या क़दीमु या हय्यु, या क़य्यूमु, या वित्रू, या अहदु, या समदु, या मल्लम् यलिद व लम् यू-लद व-लम् यकुल्लहू कूफु-वन् अ-हद+बि-रह-मति-क या अरहमर्राहिमी-न |